I recently saw the movie “Zindagi na milegi dobaara”. A nice movie indeed. A poem of Jawed Akhter was effectively used in this film. I would like to share it with the readers. Rajiv Krishna Saxena
यूं ही होता है
जब जब दर्द का बादल छाया
जब ग़म का साया लहराया
जब आंसू पलकों तक आया
जब यह तन्हा दिल घबराया
हमने दिल को यह समझाया
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनियां में यूं ही होता है
यह जो गहरे सन्नाटे हैं
वक्त ने सब को ही बांटे हैं
थोड़ा ग़म है सबका किस्सा
थोड़ी धूप है सबका हिस्सा
आंखें तेरी बेकार ही नम हैं
हर पल एक नया मौसम है
क्यों तू ऐसा पल खोता है
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनियां में यूं ही होता है
∼ जावेद अख्तर
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