Soul of India resides in her villages. Agyeya said so in his poem “Hamara Desh” and in this famous poem Sumitranandan Pant Ji makes the point that the gentle, compassionate, enduring and caring Bharatmata lives in villages. We should keep in mind that the poem was written perhaps 70-80 yers ago and the kind of poverty that existed in India at that time, is not there anymore. Yet the compessionate face of motherhood never changes! – Rajiv Krishna Saxena
भारतमाता ग्रामवासिनी
भारत माता ग्रामवासिनी।
खेतों में फैला है श्यामल,
धूल भरा मैला सा आँचल,
गंगा यमुना में आँसू जल,
मिट्टी कि प्रतिमा उदासिनी।
दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,
अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग युग के तम से विषण्ण मन,
वह अपने घर में प्रवासिनी।
तीस कोटि संतान नग्न तन,
अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्र जन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तक तरु तल निवासिनी।
स्वर्ण शस्य पर -पदतल लुंठित,
धरती सा सहिष्णु मन कुंठित,
क्रन्दन कंपित अधर मौन स्मित,
राहु ग्रसित शरदेन्दु हासिनी।
चिन्तित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित,
नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित,
आनन श्री छाया-शशि उपमित,
ज्ञान मूढ़ गीता प्रकाशिनी।
सफल आज उसका तप संयम,
पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम,
हरती जन मन भय, भव तम भ्रम,
जग जननी जीवन विकासिनी।
∼ सुमित्रानंदन पंत
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Is main pravasani kise kaha hua hai?
aaj bhi to garibo ke sath aatyachar hota hai to ma ka tap safal kaise hua
Bharatmata gaavo me pravas krti h
Bharat Mata ko
Bharat Mata ko
Bharatmata gaavo me pravas krti h
Bharan posan karne wali
Bharat Mata ko, kyuki wo Apne hi Ghar me paraye ki tarah reh rahi hain
Kripaya, ‘Bharat mata’ Kavita ka bhavarth de sakte hain
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