चिट्ठी आई है – आनंद बक्षी

चिट्ठी आई है – आनंद बक्षी

In this modern age of rationality – careers, money and possessions are foremost considerations. Each year hordes of our youngsters leave for foreign lands in search of all these. Under-neath all these “important considerations”, the feeble voices of emotions seem to get drowned. Old parents back home yearn to see their children who seem to be lost forever. Their silence is so vocal. This famous heart rendering geet of Anand Bakshi speaks for them. Last lines sum it up, for after all the life is so short and should note the things that are really important in life take precedence over other secondary consideration? The song was rendered beautifully by Pankaj Udhas in film “Naam” – Rajiv Krishna Saxena

चिट्ठी आयी है

चिट्ठी आयी है आयी है, चिट्ठी आयी है,
चिट्ठी आयी है, वतन से चिट्ठी आयी है,
बड़े दिनों के बात, हम बे-वतनों को याद,
वतन की मिट्टी आयी है…

उपर मेरा नाम लिखा है, अंदर ये पैगाम लिखा है,
ओ परदेस को जानेवाले, लौट के फिर ना आनेवाले,
सात समुंदर पार गया तू, हम को ज़िंदा मार गया तू,
खून के रिश्ते तोड़ गया तू, आँख में आँसू छोड़ गया तू,
कम खाते है, कम सोते है, बहोत ज़्यादा हम रोते हैं,
चिट्ठी आयी है…

सुनी हो गयी शहर की गलियाँ, काँटे बन गयी बाग की कलियाँ,
कहते हैं सावन के झूले, भूल गया तू हम नहीं भूले,
तेरे बिन जब आयी दीवाली, दीप नहीं दिल जले है खाली,
तेरे बिन जब आयी होली, पिचकारी से छुटी गोली,
पीपल सुना, पनघट सुना, घर शमशान का बना नमूना,
फसल कटी, आयी बैसाखी, तेरा आना रह गया बाकी,
चिट्ठी आयी है…

पहले जब तू खत लिखता था, कागज में चेहरा दिखता था,
बंद हुआ ये मेल भी अब तो, ख़त्म हुआ ये खेल भी अब तो,
डोली में जब बैठी बहना, रास्ता देख रहे थे नैना,
मैं तो बाप हूँ मेरा क्या है, तेरी माँ का हाल बुरा है,
तेरी बीवी करती है सेवा, सूरत से लगती है बेवा,
तू ने पैसा बहोत कमाया, इस पैसे ने देस छुड़ाया,
देस पराया छोड़ के आजा, पंछी पिंजरा तोड़ के आजा,
आजा उम्र बहोत है छोटी, अपने घर में भी है रोटी,
चिट्ठी आयी है…

∼ आनंद बक्षी

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