Here is a famous poem that was written by the well known poet Girija Kumar Mathur at the time when India got independence. The poem is still relevant today. Rajiv Krishna Saxena
पंद्रह अगस्त: 1947
आज जीत की रात
पहरुए सावधान रहना!
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना!
प्रथम चरण है नए स्वर्ग का
है मंज़िल का छोर
इस जन-मन्थन से उठ आई
पहली रत्न हिलोर
अभी शेष है पूरी होना
जीवन मुक्ता डोर
क्योंकि नहीं मिट पाई दुख की
विगत साँवली कोर
ले युग की पतवार
बने अम्बुधि महान रहना
पहरुए, सावधान रहना!
विषम शृँखलाएँ टूटी हैं
खुली समस्त दिशाएँ
आज प्रभंजन बन कर चलतीं
युग बन्दिनी हवाएँ
प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गईं
यह सिमटी सीमाएँ
आज पुराने सिंहासन की
टूट रही प्रतिमाएँ
उठता है तूफ़ान इन्दु तुम
दीप्तिमान रहना
पहरुए, सावधान रहना!
ऊँची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है
शत्रु हट गया, लेकिन
उसकी छायाओं का डर है
शोषण से मृत है समाज
कमज़ोर हमारा घर है
किन्तु आ रही नई ज़िन्दगी
यह विश्वास अमर है
जन-गंगा में ज्वार
लहर तुम प्रवहमान रहना
पहरुए, सावधान रहना!
∼ गिरिजा कुमार माथुर
jai hind