Here is a poem by the well-known poetess Mahadevi Varma, showing her deep devotion and appreciation of the motherland. Rajiv Krishna Saxena
फिर एक बार
मैं कम्पन हूँ तू करुण राग
मैं आँसू हूँ तू है विषाद
मैं मदिरा तू उसका खुमार
मैं छाया तू उसका अधार
मेरे भारत मेरे विशाल
मुझको कह लेने दो उदार
फिर एक बार, बस एक बार
कहता है जिसका व्यथित मौन
‘हम सा निष्फल है आज कौन’
निर्थन के धन सी हास–रेख
जिनकी जग ने पायी न देख
उन सूखे ओठों के विषाद
में मिल जाने दो हे उदार
फिर एक बार, बस एक बार
जिन पलकों में तारे अमोल
आँसू से करते हैं किलोल
जिन आँखों का नीरव अतीत
कहता ‘मिटना है मधुर जीत’
उस चिंतित चितवन में विहास
बन जाने दो मुझको उदार
फिर एक बार, बस एक बार
फूलों सी हो पल में मलीन
तारों सी सूने में विलीन
ढुलती बूँदों से ले विराग
दीपक से जलने का सुहाग
अन्तरतम की छाया समेट
मैं तुझमें मिट जाऊँ उदार!
फिर एक बार, बस एक बार
~ महादेवी वर्मा
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