This great poem was written by Allama Muhammad Iqbal, a great poet-philosopher and active political leader. Iqbal was born at Sialkot, Punjab, in 1877. He descended from a family of Kashmiri brahmins but his grandfather Sahaj Ram Sapru, had to embrace Islam. In 1904, Iqbal, then a young lecturer at the Government College, Lahore, was invited by his student Lala Hardayal – a patriot who established the Gadar Party in the US, to a meeting. In the gathering Iqbal sang Saare Jahan Se Achchha. Audience was stunned; no one had heard anything like it before. Simple and alluring, the song became a rallying point for freedom fighters. It remains one of the most popular patriotic songs in India and its music favorite of all marching bands. Unfortunately Iqbal did not live to see free India and died in 1938 – Rajiv Krishna Saxena
सारे जहां से अच्छा
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा॥
ग़ुर्बत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में।
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा॥
परबत वह सबसे ऊँचा, हम्साया आसमाँ का।
वह संतरी हमारा, वह पासबाँ हमारा॥
गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियाँ।
गुल्शन है जिनके दम से रश्क-ए-जनाँ हमारा॥
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वह दिन हैं याद तुझको।
उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा॥
मज़्हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोसिताँ हमारा॥
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा॥
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा॥
‘इक़्बाल’ कोई महरम अपना नहीं जहाँ में।
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा॥
∼ मुहम्मद इक़बाल
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