वर दे वीणावादिनि - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

वर दे वीणावादिनि – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

Here is an old classic by the famous poet Suryakant Tripathi Nirala. This lovely composition in chaste Hindi is a pleasure to sing loudly for its sheer rhythm and zing. On this Independence Day, this national poem should be shared by all. Rajiv Krishna Saxena

वर दे वीणावादिनि

वर दे वीणावादिनि! वर दे।
प्रिय स्वतंत्र–रव अमृत–मंत्र नव,
भारत में भर दे।

काट अंध–उर के बंधन–स्तर,
बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर,
कलुष–भेद–तम हर, प्रकाश भर,
जगमग जग कर दे।

नव गति, नव लय, ताल छंद नव,
नवल कंठ, नव जलद मंद्र–रव,
नव नभ के नव विहग–वृंद को,
नव पर नव स्वर दे।

वर दे वीणावादिनि! वर दे।

~ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

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