Here is an immortal poem of Anand Bakshi that was written for the 1963 movie “Phool Bane Angaare”. Such powerful and moving words never fail to moisten eyes. It is appropriate to refresh the memory of this song on this 15th of August. Rajiv Krishna Saxena
वतन पे जो फ़िदा होगा
हिमाला की बुलंदी से, सुनो आवाज है आयी
कहो माओं से दे बेटे, कहो बहनों से दे भाई
वतन पे जो फ़िदा होगा, उम्र वो नौजवाँ होगा
रहेगी जब तलक दुनियां, यह अफ़साना बयाँ होगा
वतन पे जो फ़िदा होगा, अमर वो नौजवाँ होगा
हिमाला कह रहा है इस वतन के नौजवानों से
खड़ा हूँ संतरी बनके मै सरहद पे ज़मानों से
भला इस वक्त देखूं कौन मेरा पासबाँ होगा
वतन पे जो फ़िदा होगा, अमर वो नौजवाँ होगा
चमन वालों की गैरत को है सय्यादों ने ललकारा
उठे हर फूल से कह दो कि बन जाये वो अंगारा
नही तो दोस्तों रुस्वा, हमारा गुलिस्तां होगा
हमारे एक पडोसी ने, हमारे घर को लूटा है
भरम इस दोस्त की बीएस दोस्ती का ऐसा टूटा है
कि अब हर दोस्त पे दुनिया को दुश्मन का गुमाँ होगा
वतन पे जो फ़िदा होगा, अमर वो नौजवाँ होगा
सिपाही देता है आवाज, माताओं को बहनों को
हमे हथियार ले दो, बेच डालो अपने गहनों को
कि इस कुर्बानी पे कुर्बा वतन का हर जवाँ होगा
वतन पे जो फ़िदा होगा, अमर वो नौजवाँ होगा
रहेगी जब तलक दुनियाँ, यह अफ़साना बयाँ होगा
~ आनंद बक्षी
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