I recently visited Jhansi and as I am a great admirer or Rani Laxmibai, I went to see her palace, Jhansi Fort and museum. In the museum, I found a very nice poetry book related to the first freedom fight of 1857. In this book I found a truly remarkable poem in Bhojpuri, that immediately reminded me of Shyam Narayan Pandey’s immortal poem Haldighati. The poem is about the movement of Bihari rebel soldiers in the English army, under the leadership of warrior Kunwar Singh. Excerpts from this poem are given here. Even if you do not know Bhojpuri well, it is worth reading this poem for the sheer force of expression. Read it out loud! Rajiv Krishna Saxena
कुँवर सिंह का विद्रोह
जब संतावनि के रारि भइलि
बीरन के बीर पुकार भइलि
बलिया का मंगल पांडे के
बलिवेदी से ललकार भइलि
‘मंगल’ मस्ती में चूर चलल
पहिला बागी मशहूर चलल
गोरन का पलटनि का आगे
बलिया के बांका शूर चलल
जब चिता–राख चिनगारी से
धुधुकत तनिकी अंगारी से
शोला नकलल, धधकल फइलल
बलिया का कांति–पुजारी से
घर–घर में ऐसन आगि लगलि
भारत के सूतल भागि जगलि
बिगड़लि बागी पलटनि कााली
जब चललि ठोकि आगे ताली
टोली चढ़ि चलल जवानन के
मद में मातल मरदानन के
भरि गइल बहादुर बागिन से
कोना–कोना मयदानन के
ऐसन सेना सैलानी ले
दीवानी मस्त तुफानी ले
आइल रन में रिपु का आगे
जब कुंवर सिंह सेनानी ले
खच खच खंजर तरुवारि चललि
संगीन कृपान कटारि चलिल
बर्छी बरछा का बरखा से
बहि तुरत लहू के धारि चललि
बंदूक दगलि दन् दनन् दनन्
गोली दउरालि सन सनन् सनन्
भाला बल्लभ तेगा तब्बर
बजि उठल उहां खन खनन् खनन्
खउलल तब खून किसानन के
जागल जब जोश जवानन के
छक्का छूटल अंगरेजनि के
गोरे–गोरे कपतानन के
तनिकी–सा दूर किनार रहल
भारत के बेड़ा पार रहल
लउकत खूनी दरिआव पार
मंजिल के छोर हमार रहल
∼ प्रसिद्ध नारायण सिंह
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आप के कविता हमके बहुत अच्छी लगेले, आ माटी खातों मर मिटे के जोश भर देले। आभार बा आप का।