Dhritrashtra ponders about the Mahabharata war
अब युद्ध भयंकर होना है, अगिनित प्राणो को खोना है, कैसे मन को सांझाऊँगा, पुत्रों को हत जब पाऊँगा

धृतराष्ट्र की प्रतीक्षा: राजीव कृष्ण सक्सेना

Introduction:

King Dhritarashtra was blind by birth and overwhelmingly favored his own sons (Kauravas) over his brother’s sons (Pandavas) even when the latter were right. That eventually led to the colossal Mahabharata war where millions of warriors died, including all Kauravas.  Since Dhritarashtra was blind he could not participate in the war. Sanjay was the messenger who was given the duty of bringing the news from the war-field to Dhritarashtra, who waited alone in his palace.  The poem below describes the end of first day of the war and the broodings of Dhritarashtra as he awaited the news from Sanjay.  This poem is the introductory poem in my book Geeta Kavya Madhuri that is a complete translation of Geeta into Hindi verses. Geeta starts with the question posed by Dhritarashtra at the end of the poem below. Illustration by Garima Saxena. ~ Rajiv Krishna Saxena

धृतराष्ट्र  की प्रतीक्षा

सूर्यास्त हो चल था नभ में
पर रश्मि अभी कुछ बाकी थी
अनजानी सी अनकही व्यथा
चहुं   ओर महल में व्यापी थी

धृतराष्ट्र मौन हो बैठे थे
कर रहो प्रतीक्षा संजय की
गुनते थे रण में क्या होगा
चिंता पुत्रों की जय की थी

कुछ दिवस पूर्व कोलाहल था
रण की होती तैयारी थी
दल युद्ध हेतु कुछ चले गए
कुछ के जाने की बारी थी

अंधे राजा की लाचारी
सुन तो सकते थे तैयारी
पर कर सकते थे सहयोग नहीं
रण में जाने के योग्य नहीं

कल की सी लगती बात अभी
क्रीडारत  घर में पुत्र सभी
पढ़ते लिखते सोते जागते
पल में हँसते पल में रोते

कितनी जल्दी दिन बीत गए
बचपन के वह संगीत गए
क्या कुल मस्तक यूँ  झुक जाता
वह समय अगरचे रुक जाता

क्यों पंथ धर्म का छोड़ दिया
हठ सुत का क्यों ना तोड़ दिया
इतिहास पंथ कुल का शुभ था
क्यों विकट  युद्ध में मोड दिया

अब युद्ध भयंकर होना है
अगिनित प्राणो को खोना है
कैसे मन को सांझाऊँगा
पुत्रों को हत जब पाऊँगा

लेकिन अब पछताने से क्या
जो भी होना है वह होगा
अब तो संजय आने को है
रण समाचार लाने को है

धृतराष्ट्र सोच में थे निमग्न
जब संजय ने आकर किया नमन
आतुर राजा ने मुहँ  खोला
आशंकित स्वर में यह बोला…

[भागवत गीत —  धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता  युयुत्सवः .. 

गीत काव्य माधुरी — कुरुक्षेत्र की पुण्य धरा पर .. ]

~ राजीव कृष्ण सक्सेना

लिंक्स:

Copy Right:  This poem or any part of it, cannot be used in any form and in any kind of media, without the written permission from the author Prof. Rajiv K Saxena. Legal action would be taken if an unauthorized use of this material is found. For permission enquiries may be sent to rajivksaxena@gmail.com or admin@geeta-kavita.com.

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