A little kid in a poverty stricken family… makes natural child-like impulsive demands. Then by experience, learns to scale them down. Rajiv Krishna Saxena
अनुभव परिपक्व
माँ हम नहीं मानते –
अगली दीवाली पर मेले से
हम वह गाने वाला टीन का लट्टू
लेंगे ही लेंगे –
नहीं, हम नहीं जानते –
हम कुछ नहीं सुनेंगे।
– कल गुड़ियों का मेला है
मुझे एक दो पैसे वाली
काग़ज़ की फिरकी तो ले देना
अच्छा मैं लट्टू नहीं मांगता –
तुम बस दो पैसे दे देना।
– अच्छा, माँ मुझे खाली मिट्टी दे दो –
मैं कुछ नहीं मांगूंगा:
मेले जाने का हठ नहीं ठानूंगा
जो कहोगी मानूंगा।
∼ सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
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