Here is a mischievous but funny poem by Satyanarayan Sharma “Kamal”. One sure must be careful while handling HOT peppers!! Rajiv Krishna Saxena
हरी मिर्च
खाने की मेज़ पर आज एक
लम्बी छरहरी हरी मिर्च
अदा से कमर टेढ़ी किये
चेहरे पर मासूमियत लिये
देर से झाँक रही
मानो कह रही
सलोनी सुकुमार हूँ
जायका दे जाऊंगी
आजमा कर देखिये
सदा याद आऊंगी
प्यार से उठाई
उँगलियों से सहलाई
ओठों से लगाई
ज़रा सी चुटकी खाई
अरे वह तो मुंहजली निकली
डंक मार कर
सारा मुंह जला गई
आंसू बहा गई
नानी याद आ गई
मुंह में आग भर गई
मज़ा किरकिरा कर गई
अपनी औकात तो ज़ाहिर ही की
नज़र किये वायदे से भी
मुकर गई
पछता रहा हूँ बंधुवर
कहाँ से पड़ गई नज़र
सोचा समझा सारा
प्लान फ्लॉप हो गया
मुंहजली को मुंह लगाना
महापाप हो गया
चिकना छरहरा सुंदर शरीर
भीतर छुपाये ज़हर बुझे तीर
मुंह फुलए
दुम उठाये
जहां खुट्की थी वहीं मुंह बना
सामने अकड़ी पड़ी है
काहे को मुंह लगाया
गरियाने पर अड़ी है!
∼ सत्यनारायण शर्मा ‘कमल’
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