जानते हो – राज कुमार

जानते हो? – राज कुमार

Dr. Raj Kumar is a retired professor of psychiatry. He is also a poet of an era bygone. I enjoyed hearing some of his poems in person. Here is a sample poem that exhorts those who left home in pursuit of riches, to return home. Rajiv Krishna Saxena

जानते हो?

एक चिट्ठी,
कुछ तस्वीरें लाया हूँ
देखोगे? दिखलाऊँ?
बूझोगे? बतलाऊँ?
जानते हो
क्या क्या हो  छोड़ आए
पीछे तुम गांव में?
अपनी तो सोना थी
मिटटी के भाव बिके
चांदी के गांव में।

जानते हौ
क्या क्या हौ छोड़ आए
पीछे तुम गॉव में?
एक चिट्ठी को ले के तेरी
छुटकी को देखते।
दौड़ी फिरी।
भागी फिरी।
घर-घर वो गांव में
तक जाके हाथ लगी,
बप्पा की चिट्ठी
व ने बंद करी मुट्ठी,
दिनों दिन वे बाँचते रहे
छप्पर की छाँव में?

जानते हो
क्या क्या हौ छोड़ आए
पीछे तुम गांव में?

भौजी और ननदी की
छीन झपट देखकर,
अम्मा ने मांग ले
छाती पर धरी व ने,
पल्लू की छाँव में।

जानते हौ
क्या क्या हौ छोड़ आए
पीछे तुम गांव में?
रात-रात, खुले-खुले, देख-देख
अँखियाँ के अंगना,
भौजी ने बेच दिया
तेरा दिया कंगना,
तक जीके पूरा हुआ मेरा
तुझे देखने का सपना,
लौट चलो, आज चलो,
अभी चलो, तुरंत चलो,
गीतन के गांव में।

जानते हौ
क्या क्या हौ छोड़ आए
पीछे तुम गांव में??

∼ राज कुमार

लिंक्स:

 

Check Also

This day too is over!

यह भी दिन बीत गया – रामदरश मिश्र

One more day has passed. Did it add some thing or took away some thing …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *