When would it rain? The eternal question is posed in this excerpt from a poem written by Bekal Utsahi. Rajiv Krishna Saxena
कब बरसेगा पानी
सावन भादों साधू हो गये
बादल सब सन्यासी
पछुआ चूस गयी पुरबा को
धरती रह गयी प्यासी
फ़सलों ने बैराग ले लिया
जोगिया हो गई धानी
राम जाने कब बरसेगा पानी
छप्पर पर पुरवैया बैठी
धूप टंगी अँगनाई
द्वार का बरगद ठूँठ हो गया
उजड़ गई अमराई्
चौपालों से खलियानों तक
सूरज की मनमानी
राम जाने कब बरसेगा पानी
पिघल गया चेहरों का सोना
उतर गई महताबी
गोरी बाहें हुई सांवरी
बुझ गये नयन गुलाबी
सपने झुलस गये राधा के
श्याम हुए सैलानी
राम जाने कब बरसेगा पानी
~ बेकल उत्साही
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I have heard this heart-touching poem long back in some Kavi Sammelan. There was one more line in this poem…
“Taal Talaiyyaa Maati Chaaten, Nadiyaan Ret Chabaayen”
Can you please upload the complete poem?
Thanks!!
“Taal Talaiyyaa Maati Chaaten, Nadiyaan Ret Chabaayen”
complete above poem , had heard during 1972 in kavi sammelan at Shikohabad UP