Sahir Ludhianavi was born in 1921 in a Jamindar family in Ludhiana. He migrated to Pakistan at the time of partition but returned back to India since Pakistani Government had issued an arrest warrant in response to some of his writings. Back in India he received huge recognition for his poetry within and outside Bombay film industry. He could never marry and his inability to be united with his love is very often reflected in his poetry. In the poem below, he puts up a powerful argument against injustice, atrocities, hatred and war. Rajiv Krishna Saxena
खून फिर खून है
ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है, बढ़ता है तो मिट जाता है
खून फिर खून है टपकेगा तो जम जाएगा
तुमने जिस खून को मक्तल में दबाना चाहा
आज वह कूचा–ओ–बाज़ार में आ निकला है
कहीं शोला, कहीं नारा, कहीं पत्थर बनकर
खून चलता है तो रुकता नहीं संगीनों से
सर उठता है तो दबता नहीं आईनों से
जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है
जिस्म मिट जाने से इंसान नहीं मर जाते
धड़कने रुकने से अरमान नहीं मर जाते
साँस थम जाने से ऐलान नहीं मर जाते
होंठ जम जाने से फ़रमान नहीं मर जाते
जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है
खून अपना हो या पराया हो
नस्ले– आदम का खून है आख़िर
जंग मशरिक में हो या मग़रिब में
अमन–ऐ–आलम का खून है आख़िर
बम घरों पर गिरें या सरहद पर
रूहे–तामीर ज़ख्म खाती है
खेत अपने जले कि औरों के
ज़ीस्त फ़ाकों से तिलमिलाती है
जंग तो खुद ही एक मअसला है
जंग क्या मअसलों का हल देगी
आग और खून आज बख्शेगी
भूख और अहतयाज कल देगी
बरतरी के सुबूत की खातिर
खूँ बहाना ही क्या ज़रूरी है
घर की तारीकियाँ मिटाने को
घर जलाना ही क्या ज़रूरी है
इसलिये, ऐ शरीफ़ इंसानो!
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शम्मां जलती रहे तो बेहतर है
∼ साहिर लुधियानवी
लिंक्स:
- कविताएं: सम्पूर्ण तालिका
- लेख: सम्पूर्ण तालिका
- गीता-कविता: हमारे बारे में
- गीता काव्य माधुरी
- बाल गीता
- प्रोफेसर राजीव सक्सेना
Aaj k daur ko sachchaai dikhaati ek naayab o anmol ghazal..
Yuo are genius Sahir Ludhianavi sir..