Most of our lives are spent in doing routine things. Some times we desperately feel that the routine should break and some thing exiting should happen… Here is a famous poem of Gopal Singh Nepali – Rajiv Krishna Saxena
कुछ ऐसा खेल रचो साथी
कुछ ऐसा खेल रचो साथी
कुछ जीने का आनंद मिले
कुछ मरने का आनंद मिले
दुनियां के सूने आंगन में
कुछ ऐसा खेल रचो साथी
वह मरघट का सन्नाटा तो रह रह कर काटे जाता है
दुख दर्द तबाही से दब कर मुफ़लिस का दिल चिल्लाता है
यह झूठा सन्नाटा टूटे
पापों का भरा घड़ा फूटे
तुम जंजीरों की झनझन में कुछ ऐसा खेल रचो साथी
यह उपदेशों का संचित रस तो फीका फीका लगता है
सुन धर्म कर्म की ये बातें दिल में अंगार सुलगता है
चाहे यह दुनियां जल जाये
मानव का रूप बदल जाये
तुम आज जवानी के क्षण में कुछ ऐसा खेल रचो साथी
यह दुनियां सिर्फ सफलता का उत्साहित कीड़ा कलरव है
यह जीवन केवल जीतों का मोहक मतवाला उत्सव है
तुम भी चेतो मेरे साथी
तुम भी जीतो मेरे साथी
संघर्षों के निष्ठुर रण में कुछ ऐसा खेल रचो साथी
जीवन की चंचल धारा में जो धर्म बहे बह जाने दो
मरघट की राखों में लिपटी जो लाश रहे रह जाने दो
कुछ आंधी अंधड़ आने दो
कुछ और बवंडर लाने दो
नव जीवन में नव यौवन में कुछ ऐसा खेल रचो साथी
जीवन तो वैसे सबका है तुम जीवन का श्रंगार बनो
इतिहास तुम्हारा राख बना तुम राखों में अंगार बनो
अय्याश जवानी होती है
गत वयस कहानी होती है
तुम अपने सहज लड़कपन में कुछ ऐसा खेल रचो साथी
कुछ जीने का आनंद मिले
कुछ मरने का आनंद मिले
~ गोपाल सिंह नेपाली
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