नया तरीक़ा - नागार्जुन

नया तरीक़ा – नागार्जुन

Here is a poem written in 1953 by Nagarjuna, the famous poet of common people. Corruption occupied people’s attention at that time as much as it does now. Modalities however changed as per the need of the time. Rajiv Krishna Saxena

नया तरीक़ा 

दो हज़ार मन गेहूँ आया दस गाँवों के नाम
राधे चक्कर लगा काटने, सुबह हो गई शाम
सौदा पटा बड़ी मुश्किल से, पिघले नेताराम
पूजा पाकर साध गये चुप्पी हाकिम–हुक्काम
भारत–सेवक जी को था अपनी सेवा से काम
खुला चोर बाज़ार, बढ़ा चोकर चूनी का दाम
भीतर झुरा गई ठठरी औ’ बाहर झुलसी चाम
भूखी जनता की खातिर आज़ादी हुई हराम।

नया तरीका अपनाया है राधे ने इस साल
बैलों वाले पोस्टर साटे, चमक उठी दीवाल
नीचे से लेकर ऊपर तक, समझ गया सब हाल
सरकारी गल्ला चुपके से भेज रहा नेपाल
अंदर टँगे पड़े हैं गाँधी – तिलक – जवाहरलाल
चिकना तन – चिकना पहनावा – चिकने–चिकने गाल
चिकनी क़िस्मत, चिकना पेशा, मार रहा है माल
नया तरीका अपनाया है राधे ने इस साल

~ नागार्जुन

लिंक्स:

 

Check Also

You say some thing, I say some thing

कुछ मैं कहूं कुछ तुम कहो – रमानाथ अवस्थी

Life is to be shared. It becomes very boring if it is not. Our daily …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *