New York Life and pace
यह वैभव विलास की दुनिया, ऋतु रोमानी तन रोमांचित, कहीं नयन मिल होते शीतल, अपने मन अंगार, सलोनी

न्यूयार्क की एक शाम – गिरिजा कुमार माथुर

Missing homeland in a foreign country is but natural. Here are such sentiments expressed beautifully by Girija Kumar Mathur while living in New York. Rajiv Krishna Saxena

न्यूयार्क की एक शाम

देश काल तजकर मैं आया
भूमि सिंधु के पार सलोनी
उस मिट्टी का परस छुट गया
जैसे तेरा प्यार सलोनी।

दुनिया एक मिट गई, टूटे
नया खिलौना ज्यों मिट्टी का
आँसू की सी बूँद बन गया
मोती का संसार, सलोनी।

स्याह सिंधु की इस रेखा पर
ये तिलिस्म–दुनिया झिलमिल है
हुमक उमगती याद फेन–सी
छाती में हर बार, सलोनी।

सभी पराया सभी अचीन्हा
रंग हज़ारो पर मन सूना
नभ–भवनों में याद आ रहे
ये कच्चे घर–द्वार सलोनी।

गालों की गोराई जैसा
यह पतझर का मौसम आया
झरी उमंगे मेपिल सी
सुख–सेव झरे छतनार, सलोनी।

यह वैभव विलास की दुनिया
ऋतु रोमानी तन रोमांचित
कहीं नयन मिल होते शीतल
अपने मन अंगार, सलोनी।

∼ गिरिजा कुमार माथुर

लिंक्स:

 

Check Also

In the midst of noise and extreme disarray, I am the voice of heart

तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे मन – जयशंकर प्रसाद

In times of deep distress and depression, a ray of hope and optimism suddenly emerges …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *