आठवाँ आने को है – अल्हड़ बीकानेरी

Here is a Hasya Kavita by Alhad Bikaneri. Rant of a disillusion groom who is expecting his eighth child. Rajiv Krishna Saxena

आठवाँ आने को है

मंत्र पढ़वाए जो पंडित ने, वे हम पढ़ने लगे,
यानी ‘मैरिज’ की क़ुतुबमीनार पर चढ़ने लगे।
आए दिन चिंता के फिर दौरे हमें, पड़ने लगे,
‘इनकम’ उतनी ही रही, बच्चे मगर बढ़ने लगे।
क्या करें हम, सर से अब पानी गुज़र जाने को है,
सात दुमछल्ले हैं घर में, आठवाँ आने को है।

घर के अंदर मचती रहती है सदा चीख़ो­पुकार,
आज है पप्पू को पेचिश, कल था बंटी को बुखार।
जान कर भी ठोकरें खार्इं हैं हमने बार­बार,
शादी होते ही शनीचर हो गया हम पर सवार।
अब तो राहू की दशा भी हम पे चढ़ जाने को है,
सात दुमछल्ले हैं घर में, आठवाँ आने को है।

देखिये क़िस्मत का चक्कर, देखिये कुदरत की मार,
दिल में है पतझड़ का डेरा, घर में बच्चों की बहार।
मुँह को तकिये में छुपाकर, क्यों न रोए ज़ार­ज़ार,
रोटियों के वास्ते ‘क्यूँ’, चाय की खातिर क़तार।
अपना नंबर और भी पीछे खिसक जाने को है,
सात दुमछल्ले हैं घर में, आठवाँ आने को है।

कोई ‘वेकेंसी’ नहीं घर हो गया बच्चों से ‘पैक’,
खोपड़ी अपनी फिरी भेज हुआ बीबी का ‘क्रैक’।
खाइयाँ खोदें कहीं छुप कर बचाएँ अपनी ‘बैक’,
होने ही वाला है हम पर आठवाँ ‘एयर­अटैक’।
घर में फिर खतरे का भोंपू भैरवी गाने को है,
सात दुमछल्ले हैं घर में, आठवाँ आने को है।

∼ अल्हड़ बीकानेरी

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One comment

  1. I heard by osho.Its great to see the complete poem here.

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