Here is another very funny poem by Kaka Hathrasi on modern spirituality! Enjoy. Rajiv Krishna Saxena
काका के उपदेश
आइये प्रिय भक्तगण
उपदेश कुछ सुन लीजिये
पढ़ चुके हैं बहुत पोथी
आज कुछा गुन लीजिये
हाथ में हो गोमुखी
माला सदा हिलती रहे
नम्र ऊपर से बनें
भीतर छुरी चलती रहे
नगर से बाहर बगीचे–
में बना लें झेपड़ी
दीप जैसी देह चमके
सीप जैसी खोपड़ी
तर्क करने के लिये
आ जाए कोई सामने
खुल न जाए पोल इस–
भय से लगें मत काँपने
जीव क्या है, ब्रह्म क्या
तू कौन है, मैं कौन हूँ
स्लेट पर लिख दो ‘महोदय–
आजकल मैं मौन हूँ’
धर्मसंकट शीघ्र ही
इस युक्ति से कट जाएंगे
सामने से तार्किक विद्वान
सब हट जाएंगे।
किये जा निष्काम सेवा
सब फलेच्छा छोड़ कर
याद फल की जब सताए
खा पपीता तोड़ कर
स्वर्ग का झगड़ा गया
भय नर्क का भी छोड़ दे
पाप–घट भर जाए तो
काशी पहुँच कर फोड़ दे।
∼ काका हाथरसी
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