Here is an excerpt from a very funny poem of Kaka Hathrasi on his trip to America in 1982. Many of us would recall our own experiences of first time trip to America in those times. Rajiv Krishna Saxena
काका की अमरीका यात्रा
काका कवि पाताल को चले तरुण के संग
अंग-अंग में भर रहे, हास्य व्यंग के रंग
हास्य व्यंग के रंग, प्रथम अमरीका आए
नगर-नगर में हंसी-ख़ुशी के फूल खिलाये
कविता सुनकर मस्त हो गए सबके चोला
कोका-कोला पर चढ़ बैठा काका-कोला।
ठहरे जिन-जिन घरों में, दिखे अनोखे सीन
बाथरूम में भी वहां, बिछे हुए कालीन
बिछे हुए कालीन, पैंट ने छीनी साड़ी
चले दाहिने हाथ वहां पर मोटर गाड़ी
उल्टी बातें देख उड़े अक्कल के तोते
बिजली के स्विच ऑन वहां ऊपर को होते।
बड़े-बड़े क़ानून हैं, कौन यहाँ बच पाय
कागज़ फेंकों सड़क पर जुर्माना हो जाय
जुर्माना हो जाय, धन्य है देश हमारा
बीच सड़क पर फ़ेंक दीजिये कूड़ा सारा
आज़ादी हमको पसंद हिन्दोस्तान की
मन में आए वहीँ मार दो पीक पान की।
मिलने कोई आए तो, मुहं से निकले हाय
जाते हैं जब लौटकर तो, गाते हैं बा-बाय
गाते हैं बा-बाय, कह रहीं थीं मिस क्रिसमस
साडी वाली नार को नहीं मिलती सर्विस
भारतीय नारी जो काम यहाँ करती
मजबूरी में उसको पेंट पहननी पड़ती।
अमरीका या कनाडा, अथवा हो इंगलैंड
पैंट-धारणी नारी से, डरते हैं हसबैंड
डरते हैं हसबैंड, उच्च है उनका आसन
इसीलिए तो मर्दों पर करतीं हैं शासन
भारत से भीगी बिल्ली बनकर आती हैं
कुछ दिन में ही यहाँ शेरनी बन जाती हैं।
∼ काका हाथरसी
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