I recently saw the movie “Maine Gandhi Ko Nahin Mara” directed by Jahnu Barua, with lead characters played superbly by Anupam Kher and Urmila Matondkar. It is a gripping tale of a family’s struggle to treat the delusional dementia of their old father. A poem that runs through the movie is very inspirational and I thought I should share it with the readers. Here is the poem, especially for those who get disheartened by failures. – Rajiv Krishna Saxena
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
लहरों से डर कर नौका पार नहींं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
नन्ही चींटीं जब दाना ले कर चढ़ती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगॊं मे साहस भरता है
चढ़ कर गिरना, गिर कर चढ़ना न अखरता है
मेहनत उसकी बेकार नहीं हर बार होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
डुबकियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा-जा कर खाली हाथ लौट कर आता है
मिलते न सहज ही मोती गेहरे पानी में
बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गयी देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो नींद-चैन को त्यागो तुम
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किए बिना ही जयजयकार नहींं होती
हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती
∼ हरिवंश राय बच्चन
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