Here is an old classic poem by Subhadra Kumari Chauhan, who also wrote the evergreen poem – Jhansi Ki Rani. Her writing career unfortunately came to an early end as she died at the age of 42, in a road accident. That happened before the country attained freedom. That explains the last stanza of this poem where she says that the pen of the poet is not free. Read on…- Rajiv Krishna Saxena
वीरों का कैसा हो वसंत
आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गजरता बार-बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार
सब पूछ रहे हैं दिग-दिगंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
फूली सरसों ने दिया रंग
मधु लेकर आ पहुँचा अनंग
वधु वसुधा पुलकित अंग-अंग
है वीर देश में किंतुं कंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
भर रही कोकिला इधर तान
मारू बाजे पर उधर गान
है रंग और रण का विधान
मिलने को आए हैं आदि अंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
गलबाँहें हों या हो कृपाण
चलचितवन हो या धनुषबाण
हो रसविलास या दलितत्राण
अब यही समस्या है दुरंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग-जाग
बतला अपने अनुभव अनंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
हल्दीघाटी के शिला खंड
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड
राणा ताना का कर घमंड
दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
भूषण अथवा कवि चंद नहीं
बिजली भर दे वह छंद नहीं
है कलम बँधी स्वच्छंद नहीं
फिर हमें बताए कौन? हंत-
वीरों का कैसा हो वसंत
∼ सुभद्रा कुमारी चौहान
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