Life appears so absurd at times. Things happen for no rhyme and reason. To preserve ones sanity, it is best to take things in stride. This is the advice of Nilam Singh – Rajiv Krishna Saxena
और काम सोचना
धुआँ, धूप, पानी में
ऋतु की मन मानी में
सूख गये पौधे तो मन को मत कोसना
और काम सोचना।
अधरस्ते छूट गये जो प्यारे मित्र
प्याले में तिरें जब कभी उनके चित्र
दरवाजा उढ़का कर
हाते को पार कर
नाले में कागज़ की कुछ नावें छोड़ना
कुछ हिसाब जोड़ना।
माथे पर हाथ धरे बैठी हो शाम
लौट रहा हो दिन का चरवाहा घाम
बंद कर निगाहों को
दिन की सब राहों को
रोशनी नहीं सब कुछ, खुशबू को चूमना
बोलों में घूमना।
सिक्का हौ बंटा और बिखरा है आदमी
झूठा भ्रम क्यों पालें, भुनना है लाजमी
जेब क्या, हथेली क्या
चुप्पी क्या, बोली क्या
विनिमय की दुनियां में जिसे भी कबूलना
मूल्य भर वसूलना
और काम सोचना।
∼ नीलम सिंह
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