Here is a lovely gazal by Arunima Ji. I first read it on eKavita, a yahoo group on Hindi and Urdu poetry run by Anoop Bhargawa – Rajiv Krishna Saxena
चंद अशआर गुनगुनाते हैं
यों ही हम जहमतें उठाते हैं
चंद अशआर गुनगुनाते हैं
वे बताते हैं राह दुनियां को
अपनी गलियों को भूल जाते हैं
लेते परवाज़ अब नहीं ताइर
सिर्फ पर अपने फड़फड़ाते हैं
पांव अपने ही उठ नहीं पाते
वे हमे हर लम्हें बुलाते हैं
आप कहते हैं –क्या कलाम लिखा?
और हम हैं कि मुस्कुराते हैं
जिनको दरिया डुबो नहीं पाया
एक चुल्लू में डूब जाते हैं
उसके होठों की मय कभी पी थी
उम्र गुजरी है‚ लड़खड़ाते हैं
एक तस्वीर का सहारा ले
अपनी तन्हाइयां बिताते हैं
दर्द सीने में जब भी उठता है
ढाल लफ़्जों में हम सुनते हैं
∼ अरुणिमा
लिंक्स:
- कविताएं: सम्पूर्ण तालिका
- लेख: सम्पूर्ण तालिका
- गीता-कविता: हमारे बारे में
- गीता काव्य माधुरी
- बाल गीता
- प्रोफेसर राजीव सक्सेना