Here is another famous poem of Mahadevi Verma. Experience the joy of reading pure, unadultrated Hindi language, and admire the skill of the poet to weave the words into a beautiful poem.- Rajiv Krishna Saxena
धूप सा तन दीप सी मैं।
उड़ रहा नित एक सौरभ-धूम-लेखा में बिखर तन,
खो रहा निज को अथक आलोक-सांसों में पिघल मन
अश्रु से गीला सृजन-पल,
औ’ विसर्जन पुलक-उज्ज्वल,
आ रही अविराम मिट मिट
स्वजन ओर समीप सी मैं।
धूप सा तन दीप सी मैं।
सघन घन का चल तुरंगम चक्र झंझा के बनाये,
रश्मि विद्युत ले प्रलय-रथ पर भले तुम श्रान्त आये,
पंथ में मृदु स्वेद-कण चुन,
छांह से भर प्राण उन्मन,
तम-जलधि में नेह का मोती
रचूंगी सीप सी मैं।
धूप-सा तन दीप सी मैं।
∼ महादेवी वर्मा
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