Another lovely poem by Atal Ji. One more year has passed by and one can just observe and feel inside the emptiness of this uninterrupted yet repetitive stream of passage of time….Rajiv Krishna Saxena
एक बरस बीत गया
झुलसाता जेठ मास
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अन्तर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया।
सींकचों में सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अंबर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया।
पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया।
∼ अटल बिहारी वाजपेयी
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