Raj Narayan Bisaria Ji, the well know Hindi poet, worked in Hindi service of BBC in London for ten years. Here is a poem he wrote when he finally returned to India. The poem shows the sheer exhilaration of home-coming. Enjoy! Rajiv Krishna Saxena.
घर वापसी
घर लौट के आया हूँ, यही घर है हमारा
परदेश बस गए तो तीर न मारा।
ठंडी थीं बर्फ की तरह नकली गरम छतें,
अब गुनगुनाती धुप का छप्पर है हमारा।
जुड़ता बड़ा मुश्किल से था इंसान का रिश्ता
मौसम की बात से शुरू औ’ ख़त्म भी, सारा।
सुविधाओं को खाएँ–पीएँ ओढ़ें भी तो कब तक
अपनों के बिना होता नहीं अपना गुजारा।
वसुधा कुटुंब है, मगर पहले कुटुंब है,
दुनिया चमक उठेगा अपना घर जो बुहारा।
उसका विदेशी सिक्कों से संबंध नहीं है।
लौटना है, मिटटी से लिया है जो उधारा।
घर था मगर हर वक़्त दुबकता मकान में
स्वागत है यहाँ मौत खटखटाए किवाड़।
अब अपनी जिंदगी को फिर से जीने लगा हूँ
बचपन से लेकर आज तलक फिर से, दुबारा।
∼ राजनारायण बिसारिया
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