पड़ोस - ऋतुराज

पड़ोस – ऋतुराज

A lovely poem by Rituraj Ji. A kind old couple living in a house for long time and the nature around them too applauds them! Rajiv Krishna Saxena

पड़ोस

कोयलों ने क्यों पसंद किया
हमारा ही पेड़?
बुलबुलें हर मौसम में
क्यों इसी पर बैठी रहती हैं?
क्यों गौरैयों के बच्चे हो रहे हैं
बेशुमार?
क्यों गिलहरी को इसपर से उतरकर
छत पर चक्कर काटना अच्छा लगता है?
क्यों गिरगिट सोया रहता है यहाँ?

शायद इन मुफ्त के किराएदारों को
हमारा पड़ोस अच्छा लगता है
वे देखते होंगे कि दो बूढ़े टिके हैं यहाँ।

आखिर इन दिनों में कोई खासियत तो होगी ही
जो इतनी वर्षों से
कुर्सियाँ डालकर बैठते रहे हैं पास­पास।

~ ऋतुराज

लिंक्स:

 

Check Also

Some one has gone from my life

बात बात में – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

Here is a reflection on the path of life. We find friends and lose them. …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *