Aangan - Dharamvir Bharati

आँगन – धर्मवीर भारती

Here is a poem of Dharamvir Bharti Ji from yesteryears. Social pressure then, much more than now, would prevent the acceptance of affairs of heart. A bride just before her family arranged marriage rituals start, visits her lover for the last time in a quiet aangan for a silent good bye. Broken hearts grieve in silence. Several years later, the boy revisits that aangan. Rajiv Krishna Saxena

आँगन

बरसों के बाद उसी सूने- आँगन में
जाकर चुपचाप खड़े होना
रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना
मन का कोना-कोना

कोने से फिर उन्हीं सिसकियों का उठना
फिर आकर बाँहों में खो जाना
अकस्मात् मण्डप के गीतों की लहरी
फिर गहरा सन्नाटा हो जाना
दो गाढ़ी मेंहदीवाले हाथों का जुड़ना,
कँपना, बेबस हो गिर जाना

रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना
मन को कोना-कोना
बरसों के बाद उसी सूने-से आँगन में
जाकर चुपचाप खड़े होना!

~ धर्मवीर भारती

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