अभी न सीखो प्यार – धर्मवीर भारती

Here is about innocence of early youth that should be allowed to stay just as such for some more time. A very pretty little girl, too young to enter the emotional minefield of love. See how Bharati Ji describes it. Rajiv Krishna Saxena

अभी न सीखो प्यार

यह पान फूल सा मृदुल बदन
बच्चों की जिद सा अल्हड़ मन
तुम अभी सुकोमल‚ बहुत सुकोमल‚ अभी न सीखो प्यार!

कुंजों की छाया में झिलमिल
झरते हैं चांदी के निर्झर
निर्झर से उठते बुदबुद पर
नाचा करतीं परियां हिलमिल
उन परियों से भी कहीं अधिक
हलका–फुलका लहराता तन!
तुम अभी सुकोमल‚ बहुत सुकोमल‚ अभी न सीखो प्यार!

तुम जा सकतीं नभ पार अभी
लेकर बादल की मृदुल तरी
बिजुरी की नव चमचम चुनरी
से कर सकतीं सिंगार अभी
क्यों बांध रही सीमाओं में
यह धूप सदृश खिलता यौवन?
तुम अभी सुकोमल‚ बहुत सुकोमल‚ अभी न सीखो प्यार!

अब तक तो छाया है खुमार
रेशम की सलज निगाहों पर
हैं अब तक कांपे नहीं अधर
पाकर अधरों का मृदुल भार
सपनों की आदी ये पलकें
कैसे सह पाएंगी चुम्बन?

तुम अभी सुकोमल‚ बहुत सुकोमल‚ अभी न सीखो प्यार!
यह पान फूल सा मृदुल बदन‚
बच्चों की जिद सा अल्हड़ मन!

∼ धर्मवीर भारती

Check Also

A message form the motherland for those who left the country

रे प्रवासी जाग – रामधारी सिंह दिनकर

There is always nostalgia about the country we left long ago. Even as we wade …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *