अज्ञात साथी के नाम – गोपाल दास नीरज

In this age of mobile phones, internet and emails, here is a poem with old-world charm. Old world where a hand written letter could easily light up a day, a life. Here is a charmer from Neeraj. Rajiv Krishna Saxena

अज्ञात साथी के नाम

लिखना चाहूँ भी तुझे खत तो बता कैसे लिखूँ
ज्ञात मुझको तो तेरा ठौर ठिकाना भी नहीं
दिखना चाहूँ भी तुझे तो मैं बता कैसे दिखूँ
साथ आने को तेरे पास बहाना भी नहींं

जाने किस फूल की मुस्कान हँसी है तेरी
जाने किस चाँद के टुकड़े का तेरा दर्पण है
जाने किस रात की शबनम के तेरे आँसू हैं
जाने किन शोख़ गुलाबों की तेरी चितवन है

कैसी खिड़की है वह किस रंग के परदे उसके
तू जहाँ बैठ के सुख स्वप्न बुना करती है
और वह बाग़ है कैसा कि रोज़ तू जिससे
अपने जूड़े के लिये फूल चुना करती है

तेरे मुख पर है किसी प्यार का घूँघट कोई
या कि मेरी ही तरह तुझ पे कोई छाँव नहीं
किस कन्हैया कि याद करता है तेरा गोकुल
या कि मेरी ही तरह तेरा कोई गाँव नहीं

तू जो हँसती है तो कैसे कली चटकती है
तू जो गाती है तो कैसे हवाएँ थम जातीं
तू जो रोती है तो कैसे उदास होता नभ
तू जो चलती है तो कैसे बहार थर्राती

कुछ भी मालूम नहीं है मुझे कि कौन है तू
तेरे बारे में हरेक तरह से अजान हूँ मैं
तेरे होठों के निकट सिर्फ बेजुबान हूँ मैं
तेरी दुनियाँ के लिए सिर्फ बेनिशान हूँ मैं

फिर बता तू ही, कहाँ तुझको पुकारूँ जाकर
भेजूँ संदेश तुझे कौन सी घटाओं से
किन सितारों में तेरी रात के तारे देखूँ
नाम पूछूँ तेरा किन सन्दली हवाओं से

∼ ‘गोपाल दास नीरज’

लिंक्स:

Check Also

When shall be meet again?

आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे – नरेंद्र शर्मा

There are times when lovers realize that their separation is inevitable and that they would …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *