अंतिम मिलन – बालकृष्ण राव

Saying last good-bye and parting ways is so difficult. Two young people who now know that they can no longer walk together, nonetheless are at a loss to decide who would say good-bye first. Rajiv Krishna Saxena

अंतिम मिलन

याद है मुझको, तुम्हें भी याद होगा
मार्च की वह दोपहर, वह धूल गर्मी
और वह सूनी सड़क, जिस पर हजारों
पत्तियों सूखी हवा में उड़ रही थीं।

हम खड़े थे पेड़ हे नीचे, किनारे,
एक ने पूछा, कहा कुछ दूसरे ने,
फिर लगे चुपचाप होकर सोचने हम
कौन यह पहले कहेगा “अब विदा दो”।

क्या हुए थे प्रश्न, क्या उत्तर मिले थे
कौन जाने आज, अब है याद केवल
दोपहर की, और उस सूनी सड़क की
धूल, गर्मी और उड़ती पत्तियों की,

और इसकी भी कि दोनों सोचते थे
कौन यह पहले कहेगा “अब विदा दो”।

∼ बालकृष्ण राव

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