Born “Sayyad Ibrahim” in village Pihani in District Hardoi in the year 1615, Raskhan later moved to Delhi and then to the birthplace of Lord Krishna. His later writings are uniquely immersed in the love of Lord Krishna (See poem ‘Manus hon toh vahi Raskhan’ in Geeta-kavita). Till the time he was in Delhi however, he wrote poems on love per-se (Shringaar Rasa), an example of which is given below. A woman tells her lover, why go to the garden when I can show all that the garden has right here. The poetry borders on erotic. Rajiv Krishna Saxena
बागन काहे को जाओ पिया
बागन काहे को जाओ पिया
घर बैठे ही बाग लगाए दिखाऊँ
एड़ी अनार–सी मौर रही
बहियाँ दोउ चम्पे–सी डार नवाऊँ।
छातिन मैं रस के निबुआ
अरु घूँघट खोल के दाख चखाऊँ
ढाँगन के रस के चसके
रति फूलनि की रसखानि लुटाऊँ।
अंगनि अंग मिलाइँ दोऊ
रसखान रहे लिपटे तरु छाहीं
संगनि संग अनंग को रंग
सुरंग सनी पिय दे गलबाँहीं।
बैन ज्यौं मैन सुएन सनेह की
लूटि रहे रति अंतर जाहीं
नीबी गहै कुच कंचन कुंभ
कहै बनिता पिय नाहीं जु नाहीं।
∼ रसखान
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