A life of desperation and one hardly sees a point of keep living. But enter love and the things don’t look so bad anymore… Rajiv Krishna Saxena
भर दिया जाम
भर दिया जाम जब तुमने अपने हाथों से
प्रिय! बोलो, मैं इन्कार करूं भी तो कैसे!
वैसे तो मैं कब से दुनियाँ से ऊब चुका,
मेरा जीवन दुख के सागर में डूब चुका,
पर प्राण, आज सिरहाने तुम आ बैठीं तो–
मैं सोच रहा हूँ हाय मरूं तो भी कैसे!
मंजिल अनजानी पथ की भी पहचान नहीं,
है थकी थकी–सी साँस, पाँव में जान नहीं,
पर जब तक तुम चल रहीं साथ मधुरे, मेरे
मैं हार मान अपनी ठहरूं भी तो कैसे!
मंझधार बहुत गहरी है, पतवारें टूटीं,
यह नाव समझ लो, अब डूबी या तब डूबी,
पर यह जो तुमने पाल तान दी आँचल की,
जब मैं लहरों से प्राण डरूँ भी तो कैसे
भर दिया जाम जब तुमने अपने हाथों से
प्रिय! बोलो, मैं इन्कार करूं भी तो कैसे!
∼ बालस्वरूप राही
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