An old flame suddenly come across after decades. It can be uncomfortable and the only way to get through the situation is to pretend that it never happened. Here is a famous poem of Girija Kumar Mathur. Rajiv Krishna Saxena
भूले हुओं का गीत
बरसों के बाद कभी
हम तुम यदि मिलें कहीं
देखें कुछ परिचित से
लेकिन पहचाने ना
याद भी न आये नाम
रंग, रूप, नाम, धाम
सोचें यह संभव है
पर, मन से माने ना
हो न याद, एक बार
आया तूफान, ज्वार
बन्द मिटे पृष्ठों को
पढ़ने की ठानें ना
बातें जो साथ हुईं
बातें जो साथ गईं
आँखें जो मिली रहीं
उनको भी जानें ना।
∼ गिरिजा कुमार माथुर
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