Women have a world view that is very different from that of men. Women may seem involved and may even seem to participate enthusiastically in world affairs, but in heart of heart, their real focus remains on their love only. Nothing else really matters. This poem by Shanti Singhal comes from the heart of a woman… Rajiv Krishna Saxena
जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए
जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए‚
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?
जब न तुम से स्नेह के दो कण मिले‚
व्यथा कहने के लिये दो क्षण मिले।
जब तुम्हीं ने की सतत अवहेलना‚
विश्व का सम्मान लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए‚
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?
एक आशा एक ही अरमान था‚
बस तुम्हीं पर हृदय को अभिमान था।
पर न जब तुम ही हमें अपना सके‚
व्यर्थ यह अभिमान लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए‚
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?
दूं तुम्हें कैसे जलन अपनी दिखा‚
दूं तुम्हें कैसे लगन अपनी दिखा।
जो स्वरित हो कर न कुछ भी कह सकें‚
मैं भला वे गान लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए‚
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?
शलभ का था प्रश्न दीपक से यही‚
मीन ने यह बात सागर से कही।
हो विलग तुम से न जो फिर भी मिटें‚
मै भला वे प्राण लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए‚
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?
अर्चना निष्प्राण की कब तक करूं‚
कामना वरदान की कब तक करूं।
जो बना युग युग पहेली सा रहे‚
मौन वह भगवान लेकर क्या करूं?
जब तुम्हीं अनजान बन कर रह गए‚
विश्व की पहचान लेकर क्या करूं?
~ शांति सिंहल
लिंक्स:
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बहुत खूब!
मै इनकी अन्य कविताएं भी पढ़ना चाहूँगा।
Moving archna
सुन्दर रचना
Hi,
It is great to see this lovely collection of Hindi poems. Kudos to the makers of this beautiful website.
Is this an active website?
In the poem by Shanti Singhal ji, I guess there is an error of one word –
In stenza 5, line 2:
मीन ने यह बात दीपक से कही।
Should be सागर (or something like that) instead of दीपक.
This is not to undermine the effort put in by the compiler, just a small input.
Thanks
Thanks. Correction has been made.