Here is a famous original poem of Sahir Ludhianvi that in a modified form was recited by Amitabh Bachchan in a video. There are many difficult Urdu words for which I have provided meanings. Please check the meanings of these words to fully understand this beautiful expression of sense of resignation and brooding. Rajiv Krishna Saxena
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
कि जिंदगी तेरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छाओं में
गुज़रने पाती तो शादाब भी हो सकती थी
ये तीरगी जो मेरी ज़ीस्त का मुक़द्दर है
तेरी नज़र की शुआओ में खो भी सकती थी
अजब न था कि मैं बेगाना–ऐ–आलम रहकर
तेरे जमाल की रानाइयों में खो रहता
तेरा गुदाज़ बदन‚ तेरी नीम–बाज़ आँखें
इन्हीं हसीन फ़सानों में मह्व हो रहता
पुकारतीं मुझे जब तल्ख़ियाँ ज़माने की
तेरे लबों से हलावत के घूँट पी लेता
हयात चीख़ती–फिरती बरहना–सर और मैं
घनेरी जुल्फ़ों के साए में छुप के जी लेता
मगर ये हो न सका और अब ये आलम है
कि तू नहीं‚ तेरा ग़म‚ तेरी जुस्तजू भी नहीं
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे
इसे किसी के सहारे की आरज़ू भी नहीं
ज़माने भर के दुखों को लगा चुका हूँ गले
गुज़र रहा हूँ कुछ अनजानी गुज़रगाहों से
मुहीब साए मेरी सम्त बढ़ते आते हैं
हयातो–मौत के पुर–हौल ख़ारज़ारों में
न कोई जादह‚ न मंज़िल‚ न रौशनी का सुराग़
भटक रही है ख़लाओं में ज़िंदगी मेरी
इन्हीं ख़लाओं में रह जाउँगा कभी खोकर
मैं जानता हूँ मेरी हमनफ़स मगर यूँ ही
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
∼ साहिर लुधियानवी
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