मैं हूँ अपराधी किस प्रकार – ठाकुर गोपाल शरण सिंह

मैं हूँ अपराधी किस प्रकार?– ठाकुर गोपाल शरण सिंह

How can loving someone be a crime? Asks Thakur Gopalsharan Singh in this fine poem –Rajiv Krishna Saxena

मैं हूँ अपराधी किस प्रकार?

सुन कर प्राणों के प्रेम–गीत,
निज कंपित अधरों से सभीत।
मैंने पूछा था एक बार,
है कितना मुझसे तुम्हें प्यार?

मैं हूँ अपराधी किस प्रकार?

हो गये विश्व के नयन लाल,
कंप गया धरातल भी विशाल।
अधरों में मधु – प्रेमोपहार,
कर लिया स्पर्श था एक बार।

मैं हूँ अपराधी किस प्रकार?

कर उठे गगन में मेघ धोष,
जग ने भी मुझको दिया दोष।
सपने में केवल एक बार,
कर ली थी मैंने आँख चार।

मैं हूँ अपराधी किस प्रकार?

~ ठाकुर गोपालशरण सिंह

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