Born in early 16th century Meerabai became an ardent devotee of lord Krishna since childhood. She was married to Bhoj Raj the second son of the famed Rana Sanga, the king of Mewar. Bhoj Raj died young in a battle. Meera dedicated her life to the love of Lord Krishna and composed more than a thousand devotional songs many of which are sung to this day with great reverence throughout the country. She died mysteriously in Krishna’s Ranchhorji temple in Dwarka at the age of 67. Some say that she merged with the image of Lord Krishna; her body was never found. Reader Anjana Bhatnagar informs me that in the first bhajan, the correct words written by Meera were “Naam Ratan Dhan” rather than “Ram Ratan Dhan” Rajiv Krishna Saxena
पायो जी मैंने‚ राम रतन धन पायो
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु
किरपा कर अपणायो
पायो जी मैंने‚ राम रतन धन पायो
जनम–जनम की पूँजी पाई
जग में सबै खोबायो
खरचे नहीं‚ कोई चोर न लेवै
दिन–दिन बढ़त सवायौ
पायो जी मैंने‚ राम रतन धन पायो
सत की नाव‚ खेवटिया सतगुरु
भव सागर तरि आयौ
मीरा के प्रभु गिरधर नागर
हरिख–हरिख जस गायौ
पायो जी मैंने‚ राम रतन धन पायो
हरी तुम हरो जन की पीर ।
द्रौपदी की लाज राखी‚
तुरत बढ़ायो चीर।
भक्त कारण रूप नरहरी‚
धर्यो आप सरीर।
हिरनकुश मारि लीन्हों‚
धर्यो नाहिन धीर।
हरी तुम हरो जन की पीर ।
बूड़तो गजरात राख्यौ‚
कियौ बाहर नीर।
दासी मीरा लाल गिरधर‚
चरण कंवल पर सीर।
हरी तुम हरो जन की पीर ।
मीरा बाई
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