Here is the utterings of a lovelorn man praising to sky the beauty of his love. Rajiv Krishna Saxena
मेहंदी लगाया करो
दूिधया हाथ में, चाँदनी रात में,
बैठ कर यूँ न मेंहदी रचाया करो।
और सुखाने के करके बहाने से तुम
इस तरह चाँद को मत जलाया करो।
जब भी तन्हाई में सोचता हूं तुम्हें
सच, महकने ये लगता है मेरा बदन,
इसलिये गीत मेरे हैं खुशबू भरे
तालियों से गवाही ये देता सदन,
भूल जाते हैं अपनी हँसी फूल सब
सामने उनके मत मुस्कराया करो।
साँझ कब ढल गयी कब सवरा हुआ
रात भर बात जब मैंने की रूप से
मुझको जुल्फों में अपनी छुपाते न गर
बच न पाता जमाने की इस धूप से,
लोग हाथों में लेकर खडे हैं नमक
ज़ख्म अपने न सबको दिखाया करो।
मेरा तन और मन हो गया है हरा
तुम मिले जब से धानी चुनर ओढ़ कर
जिन किताबों के पन्नों को तुमने छुआ
आज तक उन सभी को रखा मोड़ कर
खत जो भेजे थे मैंने तुम्हारे लिये
मत पतंगें बनाकर उडाया करो।
~ विष्णु सक्सेना
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Very nice sor