We have problems with our life that sadden us. However, if we see others who have far bigger problems, we realize that our problems are not that big after all! Here is an old classic from Virendra Mishra. Please read the poem loudly and slowly, to really enjoy it. Rajiv Krishna Saxena
पीर मेरी कर रही ग़मग़ीन मुझको
पीर मेरी कर रही ग़मग़ीन मुझको
और उससे भी अधिक तेरे नयन का नीर, रानी
और उससे भी अधिक हर पांव की जंजीर, रानी।
एक ठंडी सांस की डोरी मुझे बांधे
बंधनों का भार तेरा प्यार है साधे
भार अपना कुछ नहीं, देखें अगर उनको
जा रहे जो मौन पर्वत पीठ पर लादे
भूल मेरी कर रही ग़मग़ीन मुझको
और उससे भी अधिक तेरा सजल मन–फूल, रानी
और उससे भी अधिक सबकी डगर का शूल, रानी।
है प्रणय पथ में प्रलय पहले सृजन पीछे
प्राण अपने चल रहे आगे नयन पीछे
हम चले ही क्या ज़रा देखें अगर उनको
नापते हैं जो धरा पहले गगन पीछे
प्यार मेरा कर रहा ग़मग़ीन मुझको
और उससे भी अधिक सुनसान हर त्यौहार, रानी
और उससे भी अधिक सबकी व्यथा का भार, रानी।
गीत है मैंने सदा संघर्ष का गाया
राज–रानी–सा तुझे मैं रख नहीं पाया
जो जमाने को बनाने में सदा मिटते
क्या करूं मुझ पर पड़ी उनकी सघन छाया
गीत मेरा कर रहा ग़मग़ीन मुझको
और उससे भी अधिक तेरी रुआंसी प्रीत, रानी
और उससे भी अधिक जर्जर जगत की नीति, रानी।
है अमावस घिर रहा, है मेघ काला
किंतु सारा तम ख़तम है, साथ तेरे साथ, रानी
काट देंगे हम अंधेरी जिंदगी की रात, रानी।
∼ वीरेंद्र मिश्र
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