This poem belongs to an era of 1950s. Boys and girls did not meet freely and a feminine mystique existed in the eyes of young boys. There were many attempts at getting near a girl, but most ended without any consequence. Castles were made in air and got demolished all the times. Raj Narayan Ji’s poem “first attempt” aptly describes the scene. Rajiv Krishna Saxena
पहली कोशिश
जिधर तुम जा रहीं थीं
उस तरफ मुझको न जाना था
बनाया साथ पाने के लिये
झूठा बहाना था
न कुछ सोचा विचारा था
कि क्या कहना–कहाना था
मुझे तो बस अकेले
साथ में चलना–चलाना था!
रुकीं दो पल चले दोनों
सभी कुछ तो सुहाना था
मगर बतिया नहीं पाए
कि चुप्पी का ज़माना था!
बहुत धीमे कहा कुछ था
कि जब मुड़ना–मुड़ाना था
इशारा था कि मुझको
इम्तिहां में बैठ जाना था
मगर मैंने शुरू से ही
करूँगा शोध ठाना था
अभी से नौकरी मुझको
अभी पढ़ना–पढाना था!
न तुम ज्यादा सयानी थीं
न मैं ज्यादा सयाना था
डरे कमज़ोर बच्चे थे
न कुछ होना–हुवाना था!
बड़ी बेकार कोुशश थी
नया पौधा लगाना था
उगा करता रहा यह खुद
अभी यह सच अजाना था!
~ राज नारायण बिसारिया
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