Encounter with beauty takes mind away from pain and anticipations start… Here is a poem by well known poet Gopi Krishan Gopesh. Rajiv Krishna Saxena
रूप के बादल
रूप के बादल यहाँ बरसे,
कि यह मन हो गया गीला!
चाँद–बदली में छिपा तो बहुत भाया
ज्यों किसी को फिर किसी का ख्याल आया
और, पेड़ों की सघन–छाया हुई काली
और, साँस काँपी, प्यार के डर से
रूप के बादल यहाँ बरसे…
सामने का ताल,
जैसे खो गया है
दर्द को यह क्या अचानक हो गया है?
विहग ने आवाज दी जैसे किसी को–
कौन गुजरा प्राण की सूनी डगर से!
रूप के बादल यहाँ बरसे…
दूर, ओ तुम!
दूर क्यों हो, पास आओ
और ऐसे में जरा धीरज बँधाओ–
घोल दो मेरे स्वरों में कुछ नवल स्वर,
आज क्यों यह कंठ, क्यों यह गीत तरसे!
रूप के बादल यहाँ बरसे…
∼ गोपी कृष्ण गोपेश
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