Love may desert us but the height of tragedy is when the resulting pain itself also deserts us. See it in the words of Ramavtar Tyagi. Rajiv Krishna Saxena
शिकायत
आँसुओ तुम भी पराई
आँख में रहने लगे हो
अब तुम्हें मेरे नयन
इतने बुरे लगने लगे हैं।
बेवफाई और मेरे सामने ही
यह कहाँ की दोस्ती है ?
जिंदगी ताने सुनाती है कभी
मुझको जवानी कोसती है।
कंटको तुम भी विरोधी
पाँव में रहने लगे हो
अब तुम्हें मेरे चरण
इतने बुरे लगने लगे हैं।
साथ बचपन से रहे थे हम सदा
साथ ही दोनों पढ़े थे
घाटियों में साथ घूमे और हम
साथ पर्वत पर चढ़े थे।
दर्द तुम भी दूसरों के
काव्य में रहने लगे हो
अब तुम्हें मेरे भजन
इतने बुरे लगने लगे हैं।
∼ राम अवतार त्यागी
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