How beautigul you look when you feel sad!
तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो उदास! ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में सूने खंडहर के आसपास, मदभरी चांदनी जगती हो!

तुम कितनी सुंदर लगती हो: धर्मवीर भारती

Introduction:

Here is a lovely poem by Dr. Dharamvir Bharati that describes one of the myriad nuances of falling in love. Dr. Bharati has the power of surprising us with amazing out of the world metaphors! Old world charm! A suggestion – read this poem out loudly yet slowly. Enjoy… Rajiv Krishna Saxena

तुम कितनी सुंदर लगती हो

तुम कितनी सुंदर लगती हो
जब तुम हो जाती हो उदास!
ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में सूने खंडहर के आसपास
मदभरी चांदनी जगती हो!

मुख पर ढंक लेती हो आंचल
ज्यों डूब रहे रवि पर बादल‚
या दिनभर उड़ कर थकी किरन‚
सो जाती हो पांखें समेट‚ आंचल में अलस उदासी बन!
दो भूल–भटके सांध्य–विहग‚ पुतली में कर लेते निवास!
तुम कितनी सुंदर लगती हो
जब तुम हो जाती हो उदास!

खारे आंसू से धुले गाल
रूखे हलके अधखुले बाल‚
बालों में अजब सुनहरापन‚
झरती ज्यों रेशम की किरनें‚ संझा की बदरी से छन छन!
मिसरी के होठों पर सूखी किन अरमानों की विकल प्यास!
तुम कितनी सुंदर लगती हो
जब तुम हो जाती हो उदास!

भंवरों की पांतें उतर उतर
कानों में झुककर गुनगुनकर
हैं पूछ रहीं — ‘क्या बात सखी?
उन्मन पलकों की कोरों में क्यों दबी ढंकी बरसात सखी?
चम्पई वक्ष को छूकर क्यों उड़ जाती केसर की उसांस?’
तुम कितनी सुंदर लगती हो
ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में सूने खंडहर के आसपास
मदभरी चांदनी जगती हो!

धर्मवीर भारती

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