तुम्हारे हाथ से टंक कर – कुंवर बेचैन

तुम्हारे हाथ से टंक कर – कुंवर बेचैन

Here is a lovely poem about that gentle, kind and loving Jeevan Saathi. How much worthwhile she makes the journey of life. Kunwar Bechain Ji has poured his heart out. Read on – Rajiv Krishna Saxena

तुम्हारे हाथ से टंक कर

तुम्हारे हाथ से टंक कर
बने हीरे, बने मोती
बटन मेरी कमीज़ों के।

नयन का जागरण देतीं,
नहाई देह की छुअनें,
कभी भीगी हुई अलकें
कभी ये चुम्बनों के फूल
केसर-गंध सी पलकें,
सवेरे ही सपन झूले
बने ये सावनी लोचन
कई त्यौहार तीजों के।

बनी झंकार वीणा की
तुम्हारी चूड़ियों के हाथ में
यह चाय की प्याली,
थकावट की चिकलती धुप को
दो नैन हरियाली
तुम्हारी दृष्टियां छूकर
उभरने और ज़्यादा लग गए हैं
रंग चीजों के।

∼ कुंवर बेचैन

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