उम्र बढ़ने पर – महेश चंद्र गुप्त ‘खलिश’

उम्र बढ़ने पर – महेश चंद्र गुप्त ‘खलिश’

Our young readers should pay attention to what Mahesh Ji says in this lovely poem. As married couples get old together, tiffs give way to acceptance and a comfort level ultimately sets in that cannot be replicated with any other human being. All the early trials and tribulations of young married life are worth it if only for attaining that late life bliss. Mahesh Ji uses the pen-name “Khalish” and that explains “Khalish” in the last line.– Rajiv Krishna Saxena

उम्र बढ़ने पर

उम्र बढ़ने पर हमें कुछ यूँ इशारा हो गया‚
हम सफ़र इस ज़िंदगी का और प्यारा हो गया।

क्या हुआ जो गाल पर पड़ने लगी हैं झुर्रियाँ‚
हर कदम पर साथ अब उनका गवारा हो गया।

जुल्फ़ व रुखसार से बढ़ के भी कोई हुस्न है‚
दिल हसीं उनका है ये हमको नज़ारा हो गया।

चुक गई है अब जवानी‚ लड़खड़ाते पैर हैं‚
एक दूजे का मग़र हमको सहारा हो गया।

है खुदा से इल्तज़ा कि साथ उनका ही मिले‚
ग़र खलिश दुनियाँ में फिर आना हमारा हो गया।

∼ महेश चंद्र गुप्त ‘खलिश’

लिंक्स:

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