How differently is the emotion of love felt by men and women! Here is an excerpt from Ramdhari Singh Dinkar’s famous book “Urvashi”. Meanings of some difficult words are given below – Rajiv Krishna Saxena
उर्वशी (नर प्रेम – नारी प्रेम)
इसमे क्या आश्चर्य? प्रीति जब प्रथम–प्रथम जगती है‚
दुर्लभ स्वप्न–समान रम्य नारी नर को लगती है।
कितनी गौरवमयी घड़ी वह भी नारी जीवन की‚
जब अजेय केसरी भूल सुधबुध समस्त तन मन की‚
पद पर रहता पड़ा‚ देखता अनिमिष नारी मुख को‚
क्षण–क्षण रोमाकुलित‚ भोगता गूढ़ अनिर्वच सुख को!
यही लग्न है वह जब नारी‚ जो चाहे‚ वह पा ले‚
उडुपों की मेखला‚ कौमुदी का दुकूल मंगवा ले।
रंगवा ले उंगलियां पदों की ऊषा के जावक से‚
सजवा ले आरती पूर्णिमा के विधु के पावक से।
तपोनिष्ठ नर का संचित तप और ज्ञान ज्ञानी का‚
मानशील का मान‚ गर्व गर्वीले‚ अभिमानी का‚
सब चढ़ जाते भेंट‚ सहज ही‚ प्रमदा के चरणों पर‚
कुछ भी बचा नहीं पाता नारी से उद्वेलित नर।
किंतु‚ हाय‚ यह उद्वेलन भी कितना मायामय है!
उठता धधक सहज जितनी आतुरता से पुरुष हृदय है‚
उस आतुरता से न ज्वार आता नारी के मन में‚
रखा चाहती वह समेट कर सागर को बंधन में।
किंतु‚ बंध को तोड़ ज्वार जब नारी में जब जगता है‚
तब तक नर का प्रेम शिथिल‚ प्रशमित होने लगता है।
पुरुष चूमता हमें अर्ध निंद्रा में हम को पा कर‚
पर‚ हो जाता विमुख प्रेम के जग में हमें जगा कर।
और‚ जगी रमणी प्राणों में लिये प्रेम की ज्वाला‚
पंथ जोहती हुई पिरोती बैठ अश्रु की माला।
∼ रामधारी सिंह ‘दिनकर’
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