How would a student of science express his love? Here is a lovely poem by Dharmendra Kumar Singh. Rajiv Krishna Saxena
विज्ञान विद्यार्थी का प्रेम गीत
अवकलन समाकलन
फलन हो या चलनकलन
हरेक ही समीकरण
के हल में तू ही आ मिली।
घुली थी अम्ल क्षार में
विलायकों के जार में
हर इक लवण के सार में
तू ही सदा घुली मिली।
घनत्व के महत्व में
गुरुत्व के प्रभुत्व में
हर एक मूल तत्व में
तू ही सदा बसी मिली।
थी ताप में थी भाप में
थी व्यास में थी चाप में
हो तौल में कि माप मे
सदा तू ही मुझे मिली।
तुझे ही मैनें था पढ़ा
तेरे सहारे ही बढ़ा
हूं आज भी वहीं खड़ा
जहां मुझे थी तू मिली।
∼ धर्मेंद्र कुमार सिंह
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